वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
ना जाने अब कहा गुम हो |
साथ हो कर भी साथ रहते नहीं,
क्या मुझसे अब नाराज तुम हो ?
प्यारा था वो कल, साथ था हर पल
दूर रह कर भी पास थें पल पल |
आज हो तुम मेरे साथ, पर मेरे नहीं
ये मकां है तुम्हारा, हमारा बसेरा नहीं |
जिन्दगी की दौड़ में निकल गए इतने आगे,
की लौट कर आना तुमको गवारा नहीं |
साथ रह कर भी साथ चल ना पाए जो,
तो साथ रहना है मकसद मेरा भी नहीं |
चलो ढूंढे राहे अलादा अलादा,
इस बोझ को ढोना मुझको गवारा नहीं |
खुश रहो तुम जहाँ रहो प्यार से,
अब ज़िंदगी पर मेरी हक़ तुम्हारा नहीं |
वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
पर मैं तुम्हारी नहीं, ना मेरे तुम हो |
PS: you can also listen to this poem on merasangeet.com (online radio) or on youtube.
12 comments:
aajkal hindi bahut likhi ja rahi hai kya baat hai?
good one
@op: bus yun heen :)
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर कविता, दिल को छू लेनेवाली
the blogger amazes me always...har din kuch na kuch achha aur sundar mil jaata hai padhne ko..
aaj is kavita ko dhund liya :)
@madhaw: Thanks :)
@Kuna: thanks for liking :)
As I read it, I was humming along. This could be an awesome song on an acoustic.
@Mangoman: Thanks... Let me try that sometime then ;)
Very touching poem.. I feel Hindi and our other Indian languages allow us to express ourselves much better than English.
'ये मकां है तुम्हारा, हमारा बसेरा नहीं |'
बहुत अच्छे शब्द और बहुत अच्छी कविता।
http:www.hindi-sms.com
Love This....
Lovely :)
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