September 9, 2011

साथ



वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
ना जाने अब कहा गुम हो |
साथ हो कर भी साथ रहते नहीं,
क्या मुझसे अब नाराज तुम हो ?

प्यारा था वो कल, साथ था हर पल
दूर रह कर भी पास थें पल पल |
आज हो तुम मेरे साथ, पर मेरे नहीं
ये मकां है तुम्हारा, हमारा बसेरा नहीं |

जिन्दगी की दौड़ में निकल गए इतने आगे,
की लौट कर आना तुमको गवारा नहीं |
साथ रह कर भी साथ चल ना पाए जो,
तो साथ रहना है मकसद मेरा भी नहीं |

चलो ढूंढे राहे अलादा अलादा,
इस बोझ को ढोना मुझको गवारा नहीं |
खुश रहो तुम जहाँ रहो प्यार से,
अब ज़िंदगी पर मेरी हक़ तुम्हारा नहीं |

वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
पर मैं तुम्हारी नहीं, ना मेरे तुम हो |


PS: you can also listen to this poem on merasangeet.com (online radio) or on youtube.

12 comments:

ओमी said...

aajkal hindi bahut likhi ja rahi hai kya baat hai?

good one

Sweta said...

@op: bus yun heen :)

Madhaw said...

बहुत सुंदर

Madhaw said...

बहुत सुंदर कविता, दिल को छू लेनेवाली

Kunal said...

the blogger amazes me always...har din kuch na kuch achha aur sundar mil jaata hai padhne ko..

aaj is kavita ko dhund liya :)

Sweta said...

@madhaw: Thanks :)

@Kuna: thanks for liking :)

MangoMan said...

As I read it, I was humming along. This could be an awesome song on an acoustic.

Sweta said...

@Mangoman: Thanks... Let me try that sometime then ;)

Chapters From My Life said...

Very touching poem.. I feel Hindi and our other Indian languages allow us to express ourselves much better than English.

Jagdish Bhatia said...

'ये मकां है तुम्हारा, हमारा बसेरा नहीं |'
बहुत अच्छे शब्द और बहुत अच्छी कविता।
http:www.hindi-sms.com

Unknown said...

Love This....

ruchi said...

Lovely :)

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