मेरे हर पल का हिसाब रखने वाले,
काश तुमने मेरा भी ख़याल रखा होता
आईने के सामने के मेरे वक़्त को गिनने वाले,
मर्दो से भरे इस जहान में हर रोज जो लड़ाईया मैं लड़ती हूँ उनको भी गिना होता
मेरी आँखो में जो काजल मैं भरती हूँ
उसकी जग़ह जो ग़म मैं उनमे छुपाती हूँ उसे देखा होता
मेरी परेशानियों और थकान को भूलकर एक पल भी बैठे बीना
घऱ में घुसते ही जो काम पे लग जाती हूँ उसे भी देखा होता
तुमसे ज्यादा करने के बाद भी तुमसे बराबर होने के लिए
जो मैं रोज घर के बाहर जाती हूँ उसे भी देखा होता
मेरी चुप्पी को गुरुर समझने के पहले
उसके पीछे जो निराशा हैं उसे देखा होता
औरत को नर्म होना है बचपन से ये सीखा तुमने
पर उसके सख्त होने की वज़ह को अगर जाना होता
जानती हूँ करली उम्मीद मैंने ज्यादा की
काश मेरे जिस्म की जग़ह रूह को छू पते तुम
मेरी खूबियों को बेशक न देखना तुम कभी,
कमियों के आगे बढ़ कर काश मुझे देख पाते तुम