September 9, 2011

साथ



वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
ना जाने अब कहा गुम हो |
साथ हो कर भी साथ रहते नहीं,
क्या मुझसे अब नाराज तुम हो ?

प्यारा था वो कल, साथ था हर पल
दूर रह कर भी पास थें पल पल |
आज हो तुम मेरे साथ, पर मेरे नहीं
ये मकां है तुम्हारा, हमारा बसेरा नहीं |

जिन्दगी की दौड़ में निकल गए इतने आगे,
की लौट कर आना तुमको गवारा नहीं |
साथ रह कर भी साथ चल ना पाए जो,
तो साथ रहना है मकसद मेरा भी नहीं |

चलो ढूंढे राहे अलादा अलादा,
इस बोझ को ढोना मुझको गवारा नहीं |
खुश रहो तुम जहाँ रहो प्यार से,
अब ज़िंदगी पर मेरी हक़ तुम्हारा नहीं |

वहीं मैं हूँ, वहीं तुम हो
पर मैं तुम्हारी नहीं, ना मेरे तुम हो |


PS: you can also listen to this poem on merasangeet.com (online radio) or on youtube.

September 7, 2011

Wordless Wednesday - 9






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